Best prerak prasang 2022 :जब सम्राट अशोक ने समझाया सर की कीमत 

Samrat Ashoka Ek prerak prasang : मानव मस्तिष्क, जिसे कोई दूसरों के सामने तब तक नहीं झुकाता , जब तक कि उसकी कोई मजबूरी ना हो । बहुत कम ही लोग होते हैं जो अपने सर को श्रद्धा से दूसरों के सामने झुकाते हैं । जब भी सर झुकाने की बात आती है तो इंसान का अहंकार सबसे पहले उसके सामने आकर खड़ा हो जाता है । जब कोई व्यक्ति किसी ऊंचे पद पर प्रतिष्ठित हो जाता है तो वह अपना सर किसी के सामने झुकाना पसंद नहीं करता ।

परंतु जिस सर को हम किसी के सामने झुकाना नहीं चाहते आखिर उस सर की कीमत क्या है क्या आपने कभी सोचा है ? आइए सम्राट अशोक के प्रेरक प्रसंग (prerak prasang) से इस सवाल का जवाब जानते हैं ।

Ek prerak prasang 2022 :जब सम्राट अशोक ने समझाया सर की कीमत . this story is a story for happiness in life .
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सम्राट अशोक एक प्रेरक प्रसंग ek prerak prasang

एक समय की बात है । सम्राट अशोक अपने वजीर के साथ अपने राज्य का दौरा करने निकले । वह घूमते घूमते एक चबूतरे के पास पहुंचे । जहां एक  बौद्ध भिक्षु ध्यान मग्न थे । उन्हें देखकर सम्राट अशोक रुके और उन भिक्षु के पास जाकर उनको नतमस्तक होकर प्रणाम किया । भिक्षु ने आंखें खोली और देखा कि सामने सम्राट अशोक खड़े थे जो उन्हें सर झुका कर प्रणाम कर रहे थे ।

भिक्षु ने सम्राट अशोक को आशीर्वाद दिया । अब सम्राट अशोक वापस अपने महल की ओर चल पड़े । जब वे अपने महल वापस पहुंचे । तब उनका वजीर बहुत नाराज हुआ । सम्राट ने उससे पूछा कि क्या हुआ तुम इतने नाराज क्यों हो?

 तब वह बोला कि महाराज मैं यह सोचकर असमंजस में हूं कि जिस सम्राट के मस्तक पर तिलक लगाने के लिए जनता उत्सुक रहती है , उस सम्राट अशोक ने एक भिक्षु के सामने अपना सर झुका दिया । यह देख कर मुझे बहुत बुरा लगा । क्या यह सब आपको शोभा देता है कि आप एक भिक्षु के सामने झुक जाए । यह सब सुनकर सम्राट अशोक मुस्कुराए और शांत मन से अपने कक्ष में चले गए । 

धीरे-धीरे कई महीनों का समय निकल गया । फिर एक दिन सम्राट अशोक ने अपने वजीर को बुलाया और कहा कि आपको एक छोटा सा काम करना है । यह एक प्रयोग की तरह है । सम्राट अशोक वजीर को एक थैला देते हुए बोले कि आपको यह थैला लेकर बाजार जाना है और इस थैले में जो भी सामान है उसे बेच कर आना है । साथ ही एक शर्त है कि जब तक आप बाजार ना पहुंच जाए तब तक आप को इस थैले में क्या है ? यह नहीं देखना है ।

वजीर यह सोचकर असमंजस में था कि सम्राट मुझे ऐसा काम क्यों दे रहे हैं ? मैं तो वजीर हूं, यह मेरा काम नहीं है । परंतु सम्राट का आदेश था तो उसने आदेशानुसार काम किया । जब वह बाजार पहुंचा तो उसने थैला खोलकर देखा । उसमें चार चीजें थी । जिन्हें उसे बेचना था । पहली भैंसे का सर , दूसरा घोड़े का सर , तीसरा बकरे का सर और चौथा आदमी का सर ।

 यह देखकर आश्चर्य में पड़ गया कि यह क्या आदेश है । लेकिन फिर भी उसने आदेश का पालन किया । उसने बाजार में अलग-अलग दुकानों पर जाकर बड़ी मुश्किल से 3 सर भैंसे का, बकरे का और घोड़े के सर को बेच दिया । अब आदमी की खोपड़ी बची थी जिसे कोई भी खरीदना नहीं चाहता था ।

वह शाम तक बहुत थक चुका था । अब वह वापस सम्राट के पास गया । उसने सम्राट से कहा कि सम्राट मैं आपके आदेश का पालन नहीं कर सका । आदमी के सर को कोई भी खरीदने को तैयार नहीं था इसलिए उसे मैं वापस ले आया । तब सम्राट ने कहा कि निराश मत हो ऐसा करो । मैं तुम्हें कल का दिन और देता हूं ।

तुम कल फिर से इसे बाजार ले जाना और इसे कल मुफ्त में किसी को दे कर आ जाना । उससे पैसे मत लेना बस देकर वापस आ जाना । कल वापस आते हुए आपके हाथ में खाली थैला होना चाहिए । ऐसा ही मेरा आदेश है ।

 वजीर अगले दिन फिर से बाजार गया । वह बाजार में उस स्थान पर पहुंचा । जहां मांस बिक रहा था । उसने वहां आदमी के सर को बेचने की बहुत कोशिश की पर हर दुकानदार ने वजीर को हड़का दिया । वे वजीर से बोले कि “क्या पागलपन है, भला आदमी का सर भी कोई खरीदता है । अगर राजा को पता चल गया तो उल्टा ही पड़ जाएगा । हमसे पूछा जाएगा कि कहां से लाए हो , कौन है यह ? तो हमारे पास कोई जवाब नहीं होगा । बिना समय गवाएं इसे यहां से ले जाओ ।

वजीर को अब सारी कहानी समझ आ गई वह वापस सम्राट के पास गया और उनसे क्षमा मांगते हुए उनके चरणों में गिर गया । वह बोला कि “सम्राट मुझे अब सब कुछ समझ आ गया है । अहंकार को सर्वोपरि समझना मेरी मूर्खता थी । अब मुझे समझ आ चुका है कि आदमी के सर की कोई कीमत नहीं होती । यह हमारा अहंकार है जो हम अपना सर किसी के सामने नहीं झुकाते । मुझे माफ कर दीजिए सम्राट ।”

सम्राट अशोक बोले ,”क्षमा मांगने की कोई आवश्यकता नहीं है । मेरा उद्देश्य तो केवल तुम्हें समझाना था । तुम ही बताओ कि क्या मेरी मृत्यु के पश्चात तुम सदैव मेरा सर अपने पास रखोगे । सदैव संभाल पाओगे ।” 

वजीर ने कहा ,”नहीं ।” सम्राट अशोक बोले ,”बस इतना ही समझाना चाहता था कि जिस सर को कोई लेना नहीं चाहता । जिस सर का कोई मूल्य नहीं है । उस सर को किसी के सामने झुका देने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला । यह तो हमारा अहंकार है जो इस सर को झुकने नहीं देता ।” 

वजीर को सम्राट अशोक की महानता समझ आ चुकी थी ।

सम्राट अशोक एक प्रेरक प्रसंग 2022 से सीख moral of the story Samrat Ashok ek prerak prasang 

Prerak prasang से सीख : जीवन में हर वह  व्यक्ति सुखी और खुश रहता है जो अपने अहंकार पर विजय प्राप्त कर लेता है ।  अहंकारी व्यक्ति सदैव बर्बाद हो जाता है । महाविद्वान रावण भी अपने अहंकार के कारण ही धूमिल हो गया था । यदि आप जीवन में सदैव खुश रहना चाहते हैं तो अहंकार को अपने आप से सदैव दूर रखें ।

याद रखें कि यदि आप किसी को सम्मान दोगे तो बदले में आपको भी सम्मान ही मिलेगा । आप चाहे कितने भी ऊंचे या प्रतिष्ठित पद पर हैं लेकिन सामाजिक पद को ऊंचा करना चाहते हैं । तो सदैव दूसरों को प्रेम व सम्मान देकर ही ऊंचा उठ सकते हैं । 

बिहारी जी के एक दोहे में भी कहा गया है कि किसी के सामने झुकने से आप की गरिमा कम नहीं होती बल्कि आपका सामाजिक कद बड़ा हो जाता है ।

कविवर बिहारी जी का दोहा प्रस्तुत है :

 नल की अरु नल-नीर की गति एके करि जोड़ । जेतो नीचो है चले , तेतो ऊंचो होय ।

Bihari

आपको यह प्रेरक प्रसंग ek prerak prasang कहानी कैसी लगी , अपने विचार अवश्य व्यक्त करे। आपका इस ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद्। 

सम्राट अशोक कौन थे ? ek prerak prasang

सम्राट अशोक विश्व में प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारत के राजवंश मौर्य वंश के महान सम्राट थे। अशोक बौद्ध धर्म को संरक्षण देने वाले प्रतापी राजा बने ।

सम्राट अशोक को एक महान शासक के रूप में क्यों याद किया जाता है ?

वह प्रजा व राज्य के कल्याण मे रूचि रखता था। उसकी प्रजा उसके लिए सर्वोपरि थी । मौर्य सम्राट अशोक के आर्दश बहुत महान थे। वे बहुत धार्मिक व कला प्रेमी थे। उनके द्वारा लोककल्याण में किये गए कार्य आज भी प्रसिद्ध हैं। उनका शासन व विजय के किस्से विश्वप्रसिद्ध हैं। उन्होंने बौद्ध धम्म को आगे बढ़ाया। इसलिए मौर्य सम्राट अशोक को महान कहा जाता है।

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